Sukirti
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वो जेठ की दोपहरी,
एक सुन्दर पंखो वाली चिड़िया
न जाने कहाँ से आई
मेरे छज्जे में शोर मचाती
क्या कहा उसने मै ये समझ न पाई|
बाहर जाके जब देखा ,
फुर से फिर वो उड़ गई |
क्या जाने हुआ अचानक ,
अपने पंखो को समेटे ,
वो सामने मेरे गिर गई |
इसको क्या हुआ अचानक
मुझे कुछ भी समझ न आया ,
अपने हाथों में लेकर उसको मैंने सहलाया |
फिर एक बर्तन में पानी
और चावल के कुछ
दाने मै उसके पास रख आई |
पानी पीकर वो चिड़िया
चिं चिं करके उड़ गई |
तब उस दिन मैंने जाना ,
कितने प्यासे ये पंछी ,
एक बूंद न पानी पायें
चाहे दर दर भटक ये आयें |
तब से मै ने ये ठाना ,ये पंछी न प्यासे रह जाएँ
कर्त्तव्य है ये हम सब का ,की इनकी प्यास बुझायें |
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